Tuesday 19 June 2007

कारवां

कारवां आते हैं, छूकर चले जाते हैं...
धूल भरी आंधी के बाद , कुछ धुंधली सी यादें छोड़ जाते हैं ..

यादें याद नही करना चाहती, कि आगे जहाँ और भी बाकी है,
इस कारवां में कुछ बात थी …
धूल छंट जाने पर भी निशाँ अभी बाक़ी है ।

शामिल हो पाना इसमें आसां तो नहीं था...
इसे अपनाना तो इक ख़्वाब ही कहीँ था ।

ए काश , पराया मानकर ही इसे अपनाया होता …x2
ख़्वाब देखना , उन्हें पाना , जब सिखाया था आपने,
पाकर उन्हें फिर से खो देना भी तो सिखाया होता ॥

इक धागा हो काश जो इन 4 सालों को पिरो दे ..
टूट जाने पे जिसके , तो शायद खुदा भी रो दे ।

कितना अच्चा हो ग़र चंद लम्हें तो साथ ले जा पाती .. x2
जिन्दगी के सफ़र में जाने कितने कारवां गुज़रे ..
काश .. इस कारवां के साथ सारी जिन्दगी गुज़र जाती ॥

अंजली गोयल
27-04-2007

P.S. My apologies for spelling mistakes but these are due to the limitations of hindi typing at Blogspot.. so pls ignore them