दिल की खामोशी एक शोर सा मचाती है,
सन्नाटे से भी ज्यादा , ये आवाज़ सताती है |
वाचाल जिव्हा जब निशब्द रह जाती है ,
विचारों की श्रृंख्ला कहकहे लगाती है ||
स्थिर पानी के प्याले में ,
इक बूँद हलचल मचाती है|
तरंगे करवट लेकर ,
फिरसे सो जाती है||
सूरज की गर्म किरने जब ,
दिन में तपिश बरसाती है|
शर्म से लाल होकर ,
एक सुहानी शाम दे जाती है|
टूटा आशियाँ देख ,
चिडिया कब शोक मानती है |
बारिश के अंदेशे से ,
फिर तिनका लेने उड़ जाती है ||
अंतहीन सागर में जब ,
कश्ती कहीं खो जाती है |
उसे गुमाने वाली लहरें ही ,
किनारे पे छोड़ जाती हैं ||
ज़िन्दगी मीठा सा दर्द देकर,
एक हूंक सी जगाती है |
फिर बीते लम्हों को याद कर,
खुद मंद -मंद मुस्कुराती है||
-अंजली गोयल
1-Nov-09